लम्हों की खुली किताब है ज़िन्दगी, ख्यालों और साँसों का हिसाब है ज़िन्दगी, कुछ जरूरतें पूरी कुछ ख्वाहिशें अधूरी, इन्ही सवालों के जवाब हैं जिंदगी...
कहीं बेहतर है तेरी अमीरी से मुफलिसी मेरी, चंद सिक्कों के लिए तुने क्या नहीं खोया है, माना.. नहीं है मखमल का बिछोना मेरे पास, पर तु ये बता, कितनी रातें चैन से सोया है...
मोहब्बत को जो निभाते हैं उनको मेरा सलाम है, और जो बीच रास्ते में छोड़ जाते हैं उनको, हमारा ये पेगाम है, "वादा-ए-वफ़ा करो तो फिर खुद को फ़ना करो, वरना खुदा के लिए किसी की ज़िंदगी ना तबाह करो"
जिंदगी तुझसे हर कदम पर समझौता क्यों किया जाए, शौक जीने का है मगर इतना भी नहीं कि मर मर कर जिया जाए, जब जलेबी की तरह उलझ ही रही है तू ए जिंदगी, तो फिर क्यों न तुझे चाशनी में डुबा कर मजा ले ही लिया जाए।
गम ना कर ज़िन्दगी बहुत बड़ी है, चाहत की महफिल तेरे लिए सजी है, बस एक बार मुस्कुरा कर तो देख, तकदीर खुद तुझसे मिलने बहार खड़ी है...
उनको ये शिकायत है कि मैं बेवफाई पे नहीं लिखता, और मैं सोचता हूं कि मैं उनकी रुसवाई पे नहीं लिखता.. ख़ुद अपने से ज्यादा बुरा जमाने में कौन है? मैं इसलिए औरों की बुराई पे नहीं लिखता.. कुछ तो आदत से मजबूर हैं और कुछ फितरतों की पसंद है जख्म कितने भी गहरे हों, मैं उनकी दुहाई पे नहीं लिखता..
दिए से ना पूछो उसकी लो में तेल कितना है, सांसों से ना पूछो बाकी खेल कितना है, पूछना ही है तो उस मुर्दे से पूछो, ज़िन्दगी में दर्द और कफ़न में सुकून कितना है...
किसी रोज़ याद न कर पाऊं तो खुदगर्ज़ न समझ लेना दोस्तों, दरअसल छोटी सी इस उम्र में परेशानियाँ बहुत हैं, मैं भूला नहीं हूँ किसी को मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं ज़माने में, बस थोड़ी ज़िन्दगी उलझ पड़ी है दो वक़्त की रोटी कमाने में...
जब मुल्ला को मस्जिद में राम नजर आए, जब पंडित को मंदिर में रहमान नजर आए, सुरत ही बदल जाए इस दुनिया की अगर इंसान को इंसान में इंसान नजर आए...
हर किसी की ज़िन्दगी का मकसद एक ही होता है, खुद चाहे कितना ही बेवफा क्यों ना हो, तलाश हमेशा वफ़ा की ही करता है...