मुझे अपनाना ना कभी, मैं बहुत ही बदनसीब हूँ, मेरे पास कुछ नहीं है गमों के शिवा, बस मौत के ही करीब हूँ यारों...
पा लिया था दुनिया की सबसे हंसीं को, इस बात का तो हमें कभी गुरुर नहीं था, वो पास रह पाते हमारे कुछ और दिन, शायद ये हमारे नसीब को मंजूर नहीं था...
एक अजीब दास्तां है, मेरे अफ़साने की, मैंने पल-पल की कोशिश, उसके पास जाने की, नसीब था मेरा या, साजिश जामने की, दूर हुई मुझसे इतना, जितनी उम्मीद थी करीब आने की...
दिल की बातें कहने को दिल करता है, दर्द-ए-जुदाई को सहने से दिल डरता है, क्या करें किस्मत में है दूरियां, वरना हमारा तो आपके दिल में रहने को दिल करता है...
माना की किस्मत पे मेरा ज़ोर नहीं, पर मेरी मोहब्बत भी कमज़ोर नहीं, माना की उसके दिल-ओ-दिमाग में कोई और है, पर मेरी सांसों में उसके सिवा कोई और नहीं...
कोई वादा ना कर, कोई इरादा ना कर, ख्वाहिशों में खुद को आधा ना कर, ये देगी उतना जितना लिख दिया खुदा ने, इस नसीब से उम्मीद ज्यादा ना कर...
जीना चाहते हैं मगर, ज़िन्दगी रास नहीं आती, मरना चाहते हैं मगर, मौत पास नहीं आती, बहुत उदास हैं हम, इस ज़िन्दगी से, नसीब भी तड़पाने से बाज़ नहीं आती...
जैसे जुल्फें हैं चेहरे के करीब तेरे, काश हम भी आज तेरे इतने करीब होते, तेरे फूलों से चेहरे को हरदम निहारते हम, काश ऐसी होती किस्मत ऐसे नसीब होते...
वो कहते हैं कि अगर नसीब होगा मेरा, तो हम उन्हें ज़रूर पाएंगे, हम पूंछते हैं उनसे, अगर हम बदनसीब हुए, तो उनके बिना कैसे जी पाएंगे...
कुछ मजबूरियों ने हमको रोक रखा है, वरना हम तो क्या से क्या कर जाते, जब नसीब ही साथ नहीं हमारे, वरना क्या हम इस जमाने से डर जाते...